स्वास्थ्य बीमा में शोषण का बड़ा मुद्दा संसद में उठा...
स्वास्थ्य बीमा में शोषण का गंभीर मुद्दा संसद में गूंजा, आम परिवारों की पीड़ा को मिली आवाज
नई दिल्ली। भारत में स्वास्थ्य बीमा, जिसे कभी आम नागरिकों के लिए सुरक्षा कवच माना जाता था, अब कई परिवारों के लिए परेशानी और संघर्ष का कारण बन गया है। हाल के वर्षों में देशभर में बढ़ती शिकायतों, इंश्योरेंस कंपनियों की मनमानी और प्राइवेट अस्पतालों के ऊंचे बिलों के बीच, यह मुद्दा आम जनता की जिंदगी को लगातार प्रभावित करता रहा है। इसी पृष्ठभूमि में संसद के सत्र के दौरान एक सांसद ने इस लंबे समय से चल रही समस्या को जोरदार तरीके से उठाया, जिसने पूरे सदन का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
उन्होंने कहा कि—“इंश्योरेंस कंपनियों और प्राइवेट अस्पतालों द्वारा आम लोगों का लगातार exploitation यानी शोषण होता रहा है। कभी कैशलैस इलाज से मना कर दिया जाता है, कभी क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है, और कई बार मरीज़ महीनों तक अपनी रकम वापस पाने के लिए इंश्योरेंस कंपनी के चक्कर काटते रहते हैं।”
सांसद की यह टिप्पणी न केवल वास्तविकता को उजागर करती है, बल्कि उन लाखों परिवारों की समस्याओं को भी सामने लाती है जिन्होंने स्वास्थ्य बीमा पर भरोसा करके उपचार की उम्मीद की थी, लेकिन सिस्टम की खामियों के आगे ठगा हुआ महसूस किया।
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कैशलैस इलाज: काग़ज़ों में सुविधा, हकीकत में मुश्किल
भारत में स्वास्थ्य बीमा कंपनियों द्वारा कैशलैस सुविधा की खूब विज्ञापन किए जाते हैं। यह सुविधा मरीजों को बिना तुरंत पैसे दिए इलाज कराने की गारंटी देती है। लेकिन धरातल पर स्थिति बिल्कुल उलट है।
कैशलैस इलाज से इंकार एक बड़ी समस्या
सांसद ने संसद में बताया कि—
कैशलैस इलाज अक्सर बिना किसी ठोस कारण के मना कर दिया जाता है।
अस्पताल कहता है कि इंश्योरेंस कंपनी अप्रूवल नहीं दे रही।
इंश्योरेंस कंपनी कहती है कि डॉक्यूमेंट अधूरे हैं या बीमारी पॉलिसी में कवर नहीं है।
इस बीच, सबसे ज़्यादा परेशान वह मरीज और उसके परिवारजन होते हैं जिन्हें बीमारी से लड़ने के साथ-साथ पैसों की चिंता भी सताती रहती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कैशलैस क्लेम रिजेक्शन की दर साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। कई मामलों में तो अस्पताल मरीज़ को भर्ती करने से पहले ही डेपोज़िट की मांग कर देते हैं, जबकि बीमा पॉलिसी में साफ-साफ लिखा होता है कि कैशलैस सुविधा उपलब्ध है।
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क्लेम रिजेक्शन: आम लोगों के साथ सबसे बड़ा धोखा
कई परिवारों की सबसे बड़ी पीड़ा क्लेम रिजेक्शन है। पॉलिसी खरीदते समय कंपनी बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन जब क्लेम की बारी आती है तो तरह-तरह की आपत्तियाँ उठाई जाती हैं।
सांसद ने कहा:
> “कभी क्लेम ठुकरा दिए जाते हैं, कभी मामूली सी टेक्निकल वजह बताकर लोगों को परेशान किया जाता है। यह साफ तौर पर exploitation है।”
क्लेम रिजेक्शन के प्रमुख कारण जो अक्सर सामने आते हैं:
1. बीमारी प्री-एग्ज़िस्टिंग बताना
2. पॉलिसी में गलत जानकारी भरने का आरोप
3. मेडिकल रिपोर्ट पर संदेह
4. अस्पताल का बिल ‘अनुचित’ बताना
5. पॉलिसी की शर्तें अस्पष्ट होना
इसके कारण कई मरीजों को अपने बचत के पैसे खर्च करने पड़ते हैं या उधार लेना पड़ता है।
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रिम्बर्समेंट पाने में महीनों की भागदौड़
एक और बड़ी समस्या है—रिम्बर्समेंट के लिए लंबी प्रक्रिया।
कई मामलों में देखा गया है कि:
अस्पताल बिल जमा करने के बाद भी 2–6 महीने तक भुगतान नहीं मिलता।
बार-बार नए डॉक्यूमेंट की मांग की जाती है।
कंपनी हेल्पलाइन पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता।
हर बार अलग अधिकारी अलग कारण बताता है।
सांसद ने कहा कि यह आम परिवारों के साथ सीधा अन्याय है। यदि स्वास्थ्य बीमा इस तरह लोगों को दौड़ाता रहेगा, तो इसका मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।
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प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी और ऊँचे बिल
भारत के कई प्राइवेट अस्पतालों पर यह आरोप लंबे समय से है कि वे इंश्योरेंस वाले मरीजों के लिए इलाज की लागत बढ़ा देते हैं।
सर्जरी के पैकेज बढ़ा दिए जाते हैं
ICU चार्ज बढ़ा दिए जाते हैं
दवाइयों पर अधिक मार्जिन लगाया जाता है
‘अनावश्यक टेस्ट’ कराए जाते हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि अस्पताल यह जानते हैं कि भुगतान सीधे मरीज नहीं, बल्कि इंश्योरेंस कंपनी करेगी, इसलिए बिलों में बढ़ोतरी आम बात हो गई है।
परिणामस्वरूप, बीमा कंपनियाँ भी अक्सर ऊँचे बिल के कारण क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं।
यानी नुकसान केवल मरीज को ही होता है।
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“Health Insurance should not be a gamble, it must be a guarantee” – संसद में गूंजा स्वर
सांसद का यह कथन देशभर के नागरिकों की भावनाओं का सटीक प्रतिनिधित्व करता है।
स्वास्थ्य बीमा को जुआ नहीं, बल्कि एक गारंटी होना चाहिए।
क्योंकि—
लोग बीमा इसलिए लेते हैं कि मुश्किल समय में उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिले।
लेकिन यदि उसी समय कंपनियाँ हाथ खड़े कर दें, तो इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक है।
बीमार व्यक्ति और उसके परिवार को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक—तीनों तरह का तनाव सहना पड़ता है।
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संसद में उठे प्रमुख सवाल
सांसद ने अपनी बात रखते हुए सरकार से कई महत्वपूर्ण प्रश्न भी पूछे:
1. क्या इंश्योरेंस कंपनियों पर कड़ा नियंत्रण नहीं होना चाहिए?
2. क्या कैशलैस को ‘अनिवार्य’ बनाया जा सकता है, ताकि अस्पताल मनमानी न करें?
3. क्या क्लेम रिजेक्शन की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए?
4. क्या अस्पतालों के बिलिंग सिस्टम पर सरकारी निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए?
5. क्या स्वास्थ्य बीमा को उपभोक्ता अधिकारों से सीधे जोड़ा जाना चाहिए?
इन सवालों ने पूरे सदन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली को सुधारने की दिशा में गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।
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स्वास्थ्य बीमा सेक्टर में सुधार की आवश्यकता
विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं के अनुसार भारत के स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में कई बड़े सुधार आवश्यक हैं:
1. कैशलैस इलाज को हर अस्पताल में लागू करना
पूरे भारत में सभी मान्यता प्राप्त अस्पतालों में कैशलैस सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
2. क्लेम रिजेक्शन की स्पष्ट पॉलिसी
हर कंपनी को यह बताना चाहिए कि रिजेक्शन का स्पष्ट और पारदर्शी कारण क्या है।
3. इंश्योरेंस कंपनियों की जवाबदेही तय हो
यदि क्लेम गलत तरीके से रिजेक्ट किया गया, तो कंपनी पर जुर्माना लगाया जाए।
4. अस्पतालों में बिलिंग रेगुलेशन
अस्पतालों को मनमानी कीमतें वसूलने से रोका जाए।
5. हेल्थ इंश्योरेंस ऑम्बड्समैन को मजबूत करना
अधिक अधिकार और तेज़ समाधान की व्यवस्था की जाए।
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आम जनता की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे के उठते ही सोशल मीडिया पर आम लोगों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। हजारों लोगों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए—
किसी का क्लेम 1 साल तक अटका रहा
किसी को भारी बिल के बाद भी कैशलैस सुविधा नहीं मिली
किसी को 3-3 बार डॉक्यूमेंट जमा कराने पड़े
किसी का पूरा क्लेम “मेडिकल ग्राउंड” पर रिजेक्ट कर दिया गया
इन प्रतिक्रियाओं से साफ है कि यह समस्या सिर्फ कुछ लोगों की नहीं, बल्कि पूरे देश की है।
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सरकार को क्या करना चाहिए? विशेषज्ञों के सुझाव
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार सरकार को निम्न कदम उठाने चाहिए:
✔ राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा नियामक स्थापित करना
✔ डिजिटल पॉलिसी और क्लेम ट्रैकिंग को अनिवार्य बनाना
✔ अस्पतालों में पारदर्शी रेट-लिस्ट लागू करना
✔ पॉलिसी दस्तावेज़ों को सरल भाषा में बनाना
✔ ग्राहक-अनुकूल शिकायत निवारण प्रणाली बनाना
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निष्कर्ष: आम जनता को न्याय मिलना आवश्यक
स्वास्थ्य बीमा भारत में करोड़ों लोगों के लिए सुरक्षा कवच है। लेकिन यदि यह कवच ही कमजोर हो जाए, तो आम आदमी कहाँ जाएगा?
संसद में उठाई गई यह आवाज देश के हर परिवार की आवाज है।
इंश्योरेंस कंपनियों की मनमानी रोकी जानी
चाहिए, प्राइवेट अस्पतालों की बिलिंग में पारदर्शिता लानी चाहिए, और आम नागरिकों को यह भरोसा दिलाना चाहिए कि—
“Health Insurance is not a gamble, it is a guarantee.”
यही एक स्वस्थ और सुरक्षित भारत की नींव है।




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