BNS धारा 107: आत्महत्या के लिए उकसाने पर कड़ी सज़ा जाने पूरा मामला...
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 107 के तहत आरोपी को मौत,
? लीड पैराग्राफ (Lead Paragraph)
भारत में आत्महत्या की घटनाओं को रोकने और कमजोर वर्गों—विशेषकर बच्चों और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों—की सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से लागू नई भारतीय न्याय संहिता (BNS) में शामिल धारा 107 इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। यह धारा देश में किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने, मजबूर करने या मानसिक दबाव डालने को अब अत्यधिक गंभीर अपराध की श्रेणी में रखती है। खासकर यदि मामला किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे या मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति से जुड़ा हो, तो कानून आरोपी को मौत, आजीवन कारावास या 10 साल तक की सज़ा देने की शक्ति देता है। इसके साथ ही भारी-भरकम जुर्माने का भी प्रावधान जोड़ा गया है।
इस कानून का मक़सद केवल अपराधियों को सज़ा देना नहीं, बल्कि आत्महत्या के कारणों में कमी लाना और कमजोर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
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📌 BNS की धारा 107 क्या कहती है?
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), जो 2023 में पारित की गई और 2024 में लागू हुई, भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह लाई गई है। इसी संहिता में शामिल धारा 107 बहुत महत्वपूर्ण अपराधों को परिभाषित करती है।
इसके अनुसार:
यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति या बच्चा (18 वर्ष से कम आयु) को आत्महत्या करने के लिए उकसाता, प्रलोभन देता, दबाव डालता या मजबूर करता है,
तो वह कानूनन गंभीर अपराध का दोषी माना जाता है।
ऐसे मामलों में आरोपी को मौत की सज़ा, आजीवन कारावास, या 10 साल तक की कैद दी जा सकती है।
इसके अलावा उस पर भारी जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 107 यह सुनिश्चित करती है कि कमजोर और बच्चों की सुरक्षा पहले से कहीं अधिक कठोर और प्रभावी हो।
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📌 क्यों जरूरत पड़ी धारा 107 को कठोर बनाने की?
भारत में आत्महत्या एक गंभीर सामाजिक समस्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्टों में लगातार यह संकेत मिलता रहा है कि:
हर साल लाखों लोग आत्महत्या करते हैं।
इनमें बड़ी संख्या बच्चों, किशोरों, छात्रों और मानसिक तनाव झेल रहे लोगों की होती है।
सोशल मीडिया पर उकसावे, बुलिंग, दबाव और मानसिक प्रताड़ना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
ऐसे माहौल में सरकार ने आत्महत्या के उकसावे को सख्ती से रोकने के लिए धारा 107 में कठोर सज़ाओं को शामिल किया, ताकि:
अपराधियों में डर पैदा हो,
समाज में जागरूकता फैले,
और आत्महत्या के मामलों में कमी आ सके।
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📌 आत्महत्या के उकसावे की परिभाषा क्या है?
BNS की धारा 107 के अनुसार—
उकसावा सिर्फ प्रत्यक्ष तौर पर किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना नहीं है, बल्कि निम्न में से कोई भी कृत्य उकसावा माना जा सकता है:
✔️ धमकाना
✔️ मानसिक प्रताड़ना करना
✔️ सोशल मीडिया पर अपमान करना
✔️ गलत तरीके से दबाव बनाना
✔️ अपमानित कर बार-बार आत्महत्या के लिए मजबूर करना
✔️ बच्चा या मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति होने पर उसकी कमजोरियों का फायदा उठाना
✔️ झूठे आरोप लगाकर, ब्लैकमेल कर आत्महत्या की ओर धकेलना
इनमें से कोई भी व्यवहार अब गंभीर अपराध माना जाएगा।
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📌 किन लोगों को मिलेगी धारा 107 के तहत विशेष सुरक्षा?
1. 18 साल से कम उम्र के बच्चे
2. मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति
3. अशिक्षित और समाज के कमजोर वर्ग
4. शारीरिक या मानसिक रूप से उत्पीड़ित व्यक्ति
5. महिलाएं जो घरेलू हिंसा या दबाव का सामना कर रही हों
धारा 107 स्पष्ट रूप से कहती है कि बच्चों और कमजोर लोगों को आत्महत्या की ओर धकेलना किसी भी परिस्थिति में अपराध है।
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📌 सज़ा का प्रावधान (Punishment Details)
अपराध सज़ा
मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना मौत की सज़ा / आजीवन कारावास / 10 साल तक की कैद + जुर्माना
18 साल से कम उम्र के बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाना मौत / आजीवन कारावास / 10 साल कैद + जुर्माना
सामान्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना समयानुसार तय सज़ा, परिस्थिति पर निर्भर
स्पष्ट है कि बच्चों और कमजोर लोगों के मामले में दंड कहीं अधिक कठोर है।
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📌 कानून विशेषज्ञों की राय
कई कानून विशेषज्ञों का कहना है कि धारा 107 जैसे प्रावधान आधुनिक समय की जरूरत थे।
विशेषज्ञों के अनुसार:
1️⃣ उकसावे के मामलों में पहले कानून कमजोर था
IPC की धारा 306 में उकसावे की परिभाषा अस्पष्ट थी और सज़ा सीमित थी।
2️⃣ सोशल मीडिया के प्रयोग से उकसावे के नए रूप सामने आए
ऑनलाइन बुलिंग, वीडियो बनाकर अपमान करना, चैट पर धमकाना—ये सब अब कानून के दायरे में आए हैं।
3️⃣ बच्चों और मानसिक रूप से कमजोर लोगों का केस सबसे संवेदनशील
उनका मानसिक दबाव अधिक होता है, इसलिए कानून को कठोर बनाना जरूरी था।
4️⃣ कानून के गलत उपयोग की आशंका भी है
विशेषज्ञ सावधान करते हैं कि झूठे आरोपों से किसी को फंसाया न जाए।
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📌 धारा 107 और BNSS: संपत्ति की जब्ती भी संभव
पोस्टर में एक अन्य महत्वपूर्ण बात बताई गई है कि—
> भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 107 के तहत, अपराधियों की संपत्ति की जब्ती (कुर्की) और वापसी का प्रावधान भी है।
इसका मतलब है कि:
यदि उकसावे के कारण किसी की मृत्यु होती है,
और मामला गंभीर माना जाता है,
तो आरोपी की संपत्ति जब्त की जा सकती है।
यह प्रावधान उकसावे से जुड़े अपराधों को और गंभीर स्तर पर ले जाता है।
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📌 सोशल मीडिया पर क्यों वायरल हो रही है यह धारा?
हाल ही में सोशल मीडिया पर धारा 107 से संबंधित पोस्ट तेजी से वायरल हो रही है, खासकर कारण यह कि:
✔️ इसमें मौत की सज़ा का प्रावधान शामिल है
✔️ बच्चों की सुरक्षा को लेकर लोग ज्यादा जागरूक हुए हैं
✔️ साइबर बुलिंग और उत्पीड़न बढ़ा है
✔️ कई मामलों में बच्चे ऑनलाइन गेम्स, चुनौतियों, वीडियो बुलिंग के कारण मानसिक दबाव में आ जाते हैं
✔️ सरकार के नए कानून की जानकारी आम लोगों तक पहुंच रही है
लोग इसे शेयर कर दूसरों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी प्रकार का मानसिक दबाव या अपमान अपराध की श्रेणी में आ सकता है।
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📌 वास्तविक घटनाएँ जिनके कारण कानून की आवश्यकता पड़ी
(नोट: नीचे दिए गए उदाहरण सामान्य घटनाओं पर आधारित हैं, किसी विशेष व्यक्ति का उल्लेख नहीं किया गया है।)
1️⃣ छात्र पर ऑनलाइन बुलिंग का मामला
एक छात्र को लगातार सोशल मीडिया पर प्रताड़ित किया गया, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली।
ऐसे कई मामलों ने यह दर्शाया कि डिजिटल दुनिया में अपराध का रूप बदल चुका है।
2️⃣ नाबालिग लड़की को बदनाम कर दबाव बनाया गया
फर्जी वीडियो फैलाने की धमकी देकर लड़की को मानसिक रूप से इतना दबाव में ला दिया गया कि वह आत्महत्या के करीब पहुंच गई।
3️⃣ मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति पर अत्याचार
कई मामलों में देखा गया कि मानसिक रूप से कमजोर लोग उकसावे में जल्दी आ जाते हैं। उनका शोषण रोकने के लिए कानून जरूरी था।
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📌 धारा 107 में उकसावे को साबित कैसे किया जाता है?
कानून लागू करने में यह सबसे कठिन सवाल है।
✔️ मोबाइल चैट
✔️ व्हाट्सऐप/टेलीग्राम/मैसेज
✔️ धमकी भरे कॉल
✔️ सोशल मीडिया पोस्ट
✔️ CCTV फुटेज
✔️ गवाह
✔️ पारिवारिक बयान
इन सभी साक्ष्यों के आधार पर अदालत तय करती है कि उकसावा हुआ या नहीं।
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📌 परिवार और बच्चों को क्या सावधानियां रखनी चाहिए?
धारा 107 के संदर्भ में जागरूकता बहुत जरूरी है।
✔️ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नज़र रखें
✔️ ऑनलाइन गतिविधियाँ मॉनिटर करें
✔️ स्कूलों में काउंसलिंग शुरू की जाए
✔️ सोशल मीडिया पर प्रताड़ना को तुरंत रिपोर्ट करें
✔️ परिवार का सहयोग आत्महत्या रोकने में महत्वपूर्ण है
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📌 धारा 107 और आत्महत्या रोकथाम—एक सामाजिक पहलू
कानून जितना जरूरी है, उससे अधिक जरूरी समाज की मानसिकता में सुधार है।
बच्चों पर अत्यधिक दबाव न डालें
मानसिक बीमारियों को शर्म का विषय न समझें
परिवार को संवाद बढ़ाना चाहिए
स्कूलों को बुलिंग विरोधी नीतियाँ मजबूत करनी चाहिए
सरकार को हेल्पलाइन को सक्रिय रखना चाहिए
सिर्फ कानून से आत्महत्या नहीं रुकती, समाज की सोच भी बदलनी जरूरी है।
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📌 निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 107 आज के समय की जरूरत है।
यह कानून बच्चों और मानसिक रूप से कमजोर लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
उकसावे पर मौत या आजीवन कारावास जैसी कठोर सज़ाएँ यह संदेश देती हैं कि किसी भी प्रकार का मानसिक शोषण, धमकी, बुलिंग या दबाव अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
धारा 107 सिर्फ कानून नहीं, बल्कि समाज को चेतावनी है कि मानसिक प्रताड़ना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना शारीरिक हिंसा।



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