सुप्रीम कोर्ट के नए कानून, दिशानिर्देश और फैसले (2019-2025)

 नीचे भारत में सुप्रीम कोर्ट (और संविधान/उच्च न्यायालयों द्वारा न्यायिक निर्णयों से) 2019–2025 की अवधि में कुछ नए कानूनों, दिशानिर्देशों और निर्णयों का विस्तृत वर्णन है —

 विशेषकर उन बदलावों का जो संविधान, सार्वजनिक नीति, मानवाधिकारों आदि से जुड़े हैं। यह सूची पूर्ण नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण बदलावों को शामिल किया गया है। आप इसे अपने ब्लॉक या ब्लॉग के लिए संपादित कर सकते हैं।




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सुप्रीम कोर्ट के नए कानून, दिशानिर्देश और फैसले (2019-2025)


1. नए आपराधिक कानून (Criminal Laws Replacement)


दिसंबर 2023 में संसद ने तीन पुराने कानूनों को बदलने के लिए तीन नए बिल पास किए:


1. Bharatiya Nyaya Sanhita → भारतीय दंड संहिता (IPC) को बदलने के लिए।



2. Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita → ब्रिटिश काल का Code of Criminal Procedure (CrPC) बदलने के लिए।



3. Bharatiya Sakshya Adhiniyam (Act / Bill) → Indian Evidence Act को बदलने के लिए। 




ये नए कानून 1 जुलाई 2024 से लागू होने की योजना थी। 


सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक PIL (जनहित याचिका) को खारिज कर दिया क्योंकि याचिका में कहा गया कि संसद में पर्याप्त चर्चा नहीं हुई, लेकिन कोर्ट ने कहा कि कानून अभी लागू नहीं हुआ है और याचिकाकर्ता की “locus standi” (अधिकार) स्पष्ट नहीं है। 




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2. Waqf (Amendment) Act, 2025


Waqf (Amendment) Act, 2025 संसद द्वारा लाया गया नया कानून है जो 1995 के Waqf Act में कई संशोधन करता है। 


सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट की कुछ धारणाओं (provisions) पर अस्थायी स्थगन (interim stay) लगा दी है। विशेष तौर पर:


धारा 3(r) जो कहती है कि “वाकिफ” (वह व्यक्ति जो वक्फ बनाता है) को कम से कम पाँच वर्ष से इस्लाम धर्म का पालन करना चाहिए। यह प्रावधान विवादित है और कोर्ट ने इसे फिलहाल लागू नहीं होने देने का आदेश दिया है। 


वक्फ बोर्डों (Waqf Boards) और वक्फ परिषदों (Waqf Councils) की सदस्यता समेत कुछ प्रावधान भी इस अधिनियम के विवादित भाग में शामिल हैं। 





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3. वोटर्स लिस्ट / मतदाता पुनरीक्षण (SIR 2025) संबंधी याचिकाएँ


बिहार में Special Intensive Revision (SIR) 2025 नामक मतदाता सूची की पुनर्संशोधन प्रक्रिया पर सवाल उठे हैं। Association for Democratic Reforms (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह प्रक्रिया 2003 की Intensive Revision (IR) की तरह नहीं है। 


मुख्य आलोचनाएँ ये हैं कि पिछले नियमों की तुलना में इस बार नागरिकता के प्रमाणों (citizenship verification) की ज़रूरत ज़्यादा की गई है, और बहुत से मामलों में लोगों को परेशान करना पड़ रहा है। 




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4. सार्वजनिक निर्देशों और न्यायिक दिशानिर्देशों के फैसले


इनमें “क़ानून” तो नहीं बदले गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम निर्देश दिए हैं, जो कानूनों के अमल को प्रभावित करते हैं:


Pedestrian / Non-motorised vehicles / Footpaths से संबंधित नियम बनाए जाने का निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वो Motor Vehicles Act, 1988 की धारा 138(1A) और धारा 210-D के अंतर्गत पैदल यात्रियों, गैर-मोटर चालन वाहनों (जैसे साइकिल) आदि के लिए सुरक्षा नियम बनाएँ। 


अवैध/अनधिकृत निर्माणों (illegal constructions) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि:


लोकल अथॉरिटी द्वारा अनुमोदित प्लान (building plan) के उल्लंघन में जो निर्माण हुआ है वह जायज नहीं ठहराया जाए।


देरी या प्रशासन की लापरवाही का हवाला देकर उन निर्माणों को वैध न माना जाए। 



उपभोक्ता विवादों के लिए स्थायी न्यायालय / त्रिब्यवस्था (Permanent Adjudicatory Forum) की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह बताने के लिए कहा है कि क्या उपभोक्ता विवादों के लिए ऐसे ट्रिब्यूनल / न्यायालय स्थायी रूप से स्थापित किए जा सकते हैं, जहाँ लिखित परीक्षा + viva voce जैसे चयन विधियों की बजाय सरल, त्वरित और सुलभ प्रक्रिया हो। 





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4. संवैधानिक और आरक्षण से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय


State of Punjab v. Davinder Singh (2024) — सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वो अनुसूचित जातियों/जनजातियों (SC/ST) के लिए आरक्षण में उप-श्रेणियाँ (sub-classifications) बना सकें। यानी कि सभी SC/ST एक जैसी समान श्रेणी नहीं होंगे, उप-श्रेणियाँ होंगी। 


State of Tamil Nadu v. Governor of Tamil Nadu (2025) — इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य का राज्यपाल (Governor) किसी विधेयक (bill) को “absolute veto” या “pocket veto” नहीं दे सकता, जब वह विधेयक विधायिका द्वारा पारित हो चुका हो। राज्यपाल को राष्ट्रपति के पास भेजने या निर्णय लेने में सीमित अधिकार हैं, और न्यायिक समीक्षा संभव है अगर वह अनुचित देरी करता हो। 


Association for Democratic Reforms v. Union of India (Electoral Bonds Case, 2024) — सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bonds Scheme, 2018 को असंवैधानिक करार दिया। कारण थे कि यह वोटर के सूचना अधिकार और पारदर्शिता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। 




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5. सिद्धांत एवं न्यायशास्त्रीय प्रगतियाँ (Judicial Doctrines)


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानूनों को स्वचालित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें सिर्फ “rare and exceptional” मामलों में ही स्थगित (stay) किया जाना चाहिए जहाँ कानून स्पष्ट रूप से अ संवैधानिक हो, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करे या मनमाना हो। 




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निष्कर्ष और महत्व


सुप्रीम कोर्ट ने 2019-25 की अवधि में न सिर्फ़ नए कानूनों को मंज़ूरी दी है या उनका परीक्षण किया है, बल्कि यह सुनिश्चित किया है कि कानून न्यायोचित, संवैधानिक और पारदर्शी हों।


नए कानूनों (जैसे Bharatiya Nyaya Sanhita इत्यादि) ने भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली में मूल बदलाव की शुरुआत की।


कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश और निर्णय समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण, और नागरिकों की सुरक्षा व स्वराज्य को सुदृढ़ करने की दिशा में हैं।




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अगर चाहें, तो मैं आपके ब्लॉक के हिसाब से इन बदलावों का सार हिंदी में लिखा सकता हूँ, 

जिसे आप सीधे पोस्ट कर सकें — साथ-ही उनके प्रभाव और क्या आपके ब्लॉक में बदलाव दिखे होंगे ये जोड़ सकता हूँ।

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