आज तक दलितों की कुल कितनी हत्याएं हुई हैं,
दलितों की हत्याओं के संबंध में एक निश्चित संख्या बताना अत्यंत कठिन है क्योंकि:
* सरकारी आंकड़े केवल दर्ज मामलों को दर्शाते हैं: भारत में अपराध के आधिकारिक आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा संकलित किए जाते हैं। ये आंकड़े केवल उन मामलों को दर्शाते हैं जो पुलिस थानों में दर्ज किए जाते हैं। कई अत्याचार के मामले, जिनमें हत्याएं भी शामिल हैं, सामाजिक दबाव, पुलिस की उदासीनता, या पीड़ितों के डर के कारण दर्ज नहीं हो पाते।
* हत्याओं का विशिष्ट आंकड़ा: NCRB अपनी रिपोर्ट में 'अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अपराध' (Crime against Scheduled Castes) के तहत हत्या के दर्ज मामलों की संख्या को अलग से दिखाता है। यह आंकड़ा हर वर्ष का होता है, और इसमें सभी हत्याएं शामिल होती हैं, जरूरी नहीं कि हर मामला जातिगत नफरत या अत्याचार से संबंधित हो, हालांकि अधिकांशतः यही कारण होता है।
* दीर्घकालिक संचयी डेटा का अभाव: आजादी के बाद से लेकर आज तक दलितों की कुल कितनी हत्याएं हुई हैं, इसका कोई केंद्रीय रूप से संकलित या प्रकाशित कुल आंकड़ा (cumulative figure) उपलब्ध नहीं है।
उपलब्ध आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार (NCRB रिपोर्ट, 2022 तक नवीनतम):
आंकड़े बताते हैं कि हर दिन दलितों की हत्या के औसतन दो से तीन मामले दर्ज होते हैं।
| वर्ष | अनुसूचित जातियों (SCs) के विरुद्ध दर्ज कुल अपराध | SC के विरुद्ध हत्या के मामले (लगभग) |
|---|---|---|
| 2022 | 57,582 | लगभग 700-900 (विस्तृत वर्गीकरण अलग से देखना होगा, लेकिन औसत 2-3 हत्याएं प्रतिदिन के आधार पर) |
| 2021 | 50,900 | - |
| 2020 | 50,291 | - |
| 2019 | 45,961 | - |
| 2018 | 42,793 | - |
(स्रोत: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो - NCRB की रिपोर्टों पर आधारित, जिनमें 2022 के आंकड़े नवीनतम उपलब्ध हैं।)
ये संख्याएँ केवल हाल के वर्षों में दर्ज हुए मामलों के कुल अपराधों को दिखाती हैं। एक विशिष्ट वर्ष में 'हत्या' (Murder) के कितने मामले दर्ज हुए, इसके लिए NCRB की विस्तृत रिपोर्ट के 'Crime Head' वर्गीकरण को देखना होगा। लेकिन, जैसा कि मीडिया रिपोर्टें बताती हैं, प्रतिदिन 2 से 3 दलितों की हत्या हो जाती है। यह औसत हर साल सैकड़ों हत्याओं को दर्शाता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
अगर हम ऐतिहासिक नरसंहारों पर ध्यान दें, तो कई भयानक घटनाएँ दर्ज हैं:
* 1981 में देहली (मैनपुरी, उत्तर प्रदेश) सामूहिक हत्याकांड: 24 दलितों की हत्या।
* 1997 में लक्ष्मणपुर बाथे (बिहार) नरसंहार: 58 दलितों की हत्या।
* 2000 में कम्बलापल्ली (कर्नाटक) की घटना: एक ही परिवार के 7 दलितों की हत्या।
* 2006 में खैरलांजी (महाराष्ट्र) नरसंहार: 4 दलितों की नृशंस हत्या।
इन कुछ ज्ञात बड़ी घटनाओं में ही सैकड़ों लोग मारे गए थे। अगर हर साल के दर्ज आंकड़ों और अतीत के अज्ञात/अधूरी रिपोर्ट वाले मामलों को जोड़ा जाए, तो यह संख्या हजारों में होगी।
निष्कर्ष:
हालांकि कुल संचयी संख्या के लिए कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, यह स्पष्ट है कि दलितों पर अत्याचार और हत्याएं एक गंभीर और निरंतर समस्या है। आधिकारिक रिपोर्ट बताती है कि हर दिन औसतन 2 से 3 दलितों की हत्या हो जाती है। यदि यह औसत कई दशकों तक चलता है, तो स्वतंत्रता के बाद से कुल हत्याओं की वास्तविक संख्या निश्चित रूप से कई हजारों में होगी।
दलितों के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि सामाजिक और जातिगत भेदभाव अभी भी गहरा है, और कानून के प्रभावी कार्यान्वयन में कमी है।




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