भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लागू किए गए नए कानून

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🏛️ भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लागू किए गए नए कानून (2019–2025)


भारत का न्याय तंत्र लोकतंत्र का सबसे मज़बूत स्तंभ है। 2019 से 2025 के बीच सुप्रीम कोर्ट और संसद ने कई महत्वपूर्ण नए कानून और सुधार लागू किए हैं, जिनसे देश की न्याय व्यवस्था, नागरिक अधिकार और शासन प्रणाली में बड़ा परिवर्तन आया है। नीचे इन सभी प्रमुख बदलावों का विस्तृत विवरण दिया गया है।




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⚖️ 1. नए आपराधिक कानून (Criminal Law Reforms 2023)


भारत में अंग्रेज़ों के समय से चले आ रहे IPC (Indian Penal Code), CrPC (Criminal Procedure Code) और Evidence Act को अब नए नामों और रूपों में बदला गया है —

1 जुलाई 2024 से लागू ये कानून हैं:


1. भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) – IPC की जगह।



2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) – CrPC की जगह।



3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam) – Evidence Act की जगह।




इन कानूनों में आधुनिक अपराधों जैसे साइबर क्राइम, महिलाओं पर हिंसा, झूठे सबूत, डिजिटल रिकॉर्ड आदि को ध्यान में रखकर संशोधन किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बदलाव को “न्यायिक इतिहास का नया अध्याय” कहा और PIL खारिज करते हुए कहा कि संसद को कानून बनाने का पूरा अधिकार है।



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🕌 2. वक्फ (Waqf) संशोधन अधिनियम, 2025


2025 में केंद्र सरकार ने Waqf (Amendment) Act लागू किया।

इसमें वक्फ संपत्तियों की पहचान, नियंत्रण और बोर्ड की शक्तियों में परिवर्तन किए गए हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ धाराओं पर रोक लगा दी —

जैसे “वाकिफ” व्यक्ति का कम से कम 5 वर्ष से मुसलमान होना आवश्यक है — कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना और अस्थायी स्थगन दे दिया।


यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़ा है, इसलिए कोर्ट ने संतुलित रुख अपनाया।



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🗳️ 3. वोटर लिस्ट संशोधन और पारदर्शिता (SIR 2025)


बिहार में SIR 2025 के तहत नई मतदाता सूची (Voter List) तैयार की जा रही है।

इस प्रक्रिया में नागरिकता प्रमाण की जांच को लेकर विवाद हुआ, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा।

ADR संगठन ने कहा कि यह 2003 की तुलना में अधिक सख्त प्रक्रिया है।

कोर्ट ने कहा कि “मतदाता सूची देश के लोकतंत्र की रीढ़ है, इसे निष्पक्ष और पारदर्शी रखना सरकार का कर्तव्य है।”



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🚶 4. पैदल यात्रियों और गैर-मोटर चालित वाहनों के लिए नया नियम


सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे Motor Vehicles Act, 1988 की धारा 138(1A) और 210-D के अंतर्गत

पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और छोटे वाहनों की सुरक्षा के लिए नए नियम बनाएं।

अब फुटपाथ, साइकिल ट्रैक और सड़क सुरक्षा को कानूनी रूप से प्राथमिकता दी जा रही है।



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🏗️ 5. अवैध निर्माण (Illegal Construction) पर सख्ती


कोर्ट ने साफ कहा कि अवैध बिल्डिंग या अतिक्रमण को किसी भी बहाने से वैध नहीं ठहराया जा सकता।

स्थानीय प्रशासन की देरी या चूक भी गैर-कानूनी निर्माण को माफ नहीं कर सकती।

इससे देशभर में नगर निगमों और विकास प्राधिकरणों पर जवाबदेही बढ़ी है।



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👩‍⚖️ 6. उपभोक्ता अधिकार और स्थायी ट्रिब्यूनल


सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए स्थायी न्यायिक मंच (Permanent Forum) की जरूरत पर जोर दिया।

यह फैसला उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि अब उन्हें सालों तक कोर्ट के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

सरकार से जवाब मांगा गया है कि क्या ऐसे तेज़ न्याय मंच देशभर में बनाए जा सकते हैं।



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🧑‍🤝‍🧑 7. आरक्षण में उप-श्रेणियाँ (Sub-Classification of SC/ST)


State of Punjab v. Davinder Singh (2024) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि

राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अंदर उप-श्रेणियाँ बना सकती हैं,

ताकि जो जातियाँ अत्यधिक पिछड़ी हैं, उन्हें वास्तविक लाभ मिल सके।

यह फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांत को मजबूत बनाता है।



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🏛️ 8. राज्यपाल की शक्तियों पर सीमाएँ


State of Tamil Nadu v. Governor (2025) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा —

राज्यपाल किसी भी विधेयक को अनिश्चित समय तक रोककर नहीं रख सकता।

वह या तो राष्ट्रपति को भेजे या समय पर निर्णय ले।

यह फैसला संघीय ढांचे को मजबूत करने और राज्यों के अधिकार की रक्षा के लिए अहम है।



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💰 9. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना असंवैधानिक


Association for Democratic Reforms v. Union of India (2024)

में सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bonds Scheme, 2018 को असंवैधानिक घोषित किया।

क्योंकि इस योजना से राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा गुप्त (anonymous) हो गया था।

कोर्ट ने कहा — “लोकतंत्र में पारदर्शिता सर्वोपरि है, मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि दलों को धन कहाँ से मिल रहा है।”




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📜 10. न्यायिक सिद्धांत – कानूनों पर रोक दुर्लभ मामलों में ही


सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में यह सिद्धांत स्थापित किया कि

कोई भी नया कानून “अपने आप” रद्द नहीं किया जा सकता।

केवल तभी स्थगन (stay) दिया जाएगा जब वह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक हो।

इससे न्यायपालिका और विधायिका के बीच संतुलन बना रहेगा।



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🔍 निष्कर्ष


2019 से 2025 के बीच सुप्रीम कोर्ट और संसद दोनों ने मिलकर भारत के लोकतंत्र में कई ऐतिहासिक बदलाव किए हैं।

इन बदलावों का असर हर आम नागरिक पर पड़ेगा — चाहे वो

न्यायिक पारदर्शिता हो, नागरिक सुरक्षा, चुनाव सुधार या सामाजिक समानता।


नए कानूनों ने भारत को एक आधुनिक, डिजिटल और न्यायिक रूप से सशक्त राष्ट्र की दिशा में

 आगे बढ़ाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह दिखाया है कि उसका लक्ष्य केवल “न्याय करना” नहीं बल्कि “सही न्याय” करना है।



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