"केआईटी में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न" (कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग)

 📰 केआईटी में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न — कृषि में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से नई क्रांति की दिशा


मिर्जामुराद (जनवार्ता)।

कृषि और तकनीक के संगम पर केंद्रित एक ऐतिहासिक आयोजन का गवाह बना काशी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (KIT), जहाँ एआईसीटीई (AICTE) द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक समापन हुआ। यह सम्मेलन न केवल आधुनिक तकनीकी प्रयोगों का मंच बना, बल्कि इसमें कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग (ML), और डेटा एनालिटिक्स के भविष्य पर गहन चर्चा की गई।


Flipkart

---


🌾 सम्मेलन का उद्घाटन और उद्देश्य


सम्मेलन का उद्घाटन बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. पवन कुमार दुबे के करकमलों द्वारा किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि —


> “कृषि क्षेत्र आज सबसे अधिक तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता वाला क्षेत्र है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकें किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं।”




उन्होंने बताया कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में एआई आधारित प्रणाली खेती को न केवल वैज्ञानिक बनाएगी, बल्कि इससे उत्पादन, गुणवत्ता और स्थिरता में भी सुधार होगा।



---


🧠 कृषि में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका


डॉ. दुबे ने विस्तार से समझाया कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) किसानों की मदद कर सकती है। उन्होंने कहा —


AI के माध्यम से फसलों की उपज का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।


मिट्टी की गुणवत्ता, नमी स्तर, और पोषक तत्वों का डेटा विश्लेषण (Data Analysis) कर किसान यह तय कर सकते हैं कि कौन सी फसल कहां बोना अधिक लाभदायक रहेगा।


सेंसर आधारित तकनीक से खेतों की निगरानी, रोग पहचान और कीटनाशक उपयोग का निर्धारण किया जा सकता है।



इससे किसानों को कम लागत में बेहतर उत्पादन प्राप्त होगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिलेगी।



---


🌱 कृषि में मशीन लर्निंग के प्रयोग


मशीन लर्निंग, यानी डेटा से सीखने वाली प्रणाली, कृषि के क्षेत्र में तेजी से उपयोगी साबित हो रही है।

डॉ. दुबे ने कहा कि मशीन लर्निंग मॉडल्स फसलों की वृद्धि, बीमारियों और मौसम संबंधी आंकड़ों को समझकर किसानों को पूर्व चेतावनी दे सकते हैं।


इस तकनीक की मदद से:


फसलों में लगने वाली बीमारियों की पहचान शुरुआती चरण में हो सकती है,


सही खाद और सिंचाई की मात्रा निर्धारित की जा सकती है,


और किसानों को समय पर सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है।




---


📊 डेटा एनालिटिक्स से कृषि में क्रांति


सम्मेलन में डेटा एनालिटिक्स के उपयोग पर विशेष सत्र आयोजित किया गया।

वक्ताओं ने बताया कि डेटा एनालिटिक्स कृषि क्षेत्र की रीढ़ बन सकता है।

डाटा का विश्लेषण करके मिट्टी, मौसम, और उत्पादन से जुड़ी सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान वैज्ञानिक आधार पर खेती कर सकें।


भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, प्रयागराज के प्रो. डॉ. निलोकंठ पंत ने अपने संबोधन में कहा —


> “यदि हम डेटा आधारित खेती अपनाते हैं, तो फसलों की गुणवत्ता, उपज और स्थायित्व में उल्लेखनीय सुधार संभव है। एआई और बिग डेटा मिलकर भारत के कृषि तंत्र को पूरी तरह बदल सकते हैं।”





---


🌍 मिट्टी और जल संरक्षण पर नए दृष्टिकोण


डॉ. पंत ने बताया कि आधुनिक तकनीकों के उपयोग से न केवल फसलों की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि मिट्टी और जल संरक्षण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति संभव है।

उन्होंने कहा कि डेटा एनालिटिक्स के जरिए मिट्टी की नमी, पीएच स्तर और पोषक तत्वों की मात्रा का आकलन किया जा सकता है, जिससे उचित फसल चक्र और खाद योजना बनाई जा सके।



---


🧬 जीनोम सिक्वेंसिंग और कृषि का भविष्य


आईएसआर, नोएडा की डॉ. श्रेता अरोड़ा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि


> “जीनोम सिक्वेंसिंग तकनीक आधुनिक कृषि का नया अध्याय खोल सकती है।”




उन्होंने बताया कि इस तकनीक से फसलों की आनुवंशिक विविधता का अध्ययन किया जा सकता है और नई किस्में तैयार की जा सकती हैं जो अधिक उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हों।


उन्होंने फसलों की फेनोटाइपिंग (Phenotyping) और मॉलिक्यूलर मार्कर तकनीक के उपयोग पर प्रकाश डाला, जिससे कृषि अनुसंधान में गति लाई जा सकती है।



---


♻️ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरणीय संतुलन


बीएचयू के प्रो. डॉ. रजनी प्रताप सिंह ने अपने संबोधन में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में प्लास्टिक और ठोस कचरे का खतरा कृषि और पर्यावरण दोनों पर गहरा असर डाल रहा है।

इससे निपटने के लिए बायोडिग्रेडेबल विकल्प, रीसाइक्लिंग तकनीक, और कचरे से उर्जा उत्पादन जैसी विधियों को अपनाना जरूरी है।


उन्होंने छात्रों और शोधकर्ताओं से अपील की कि वे तकनीकी शोध को सतत विकास (Sustainable Development) से जोड़ें।



---


🧑‍🏫 छात्रों और शोधार्थियों की भागीदारी


दो दिवसीय सम्मेलन में देशभर के 100 से अधिक संस्थानों के शोधार्थी, प्रोफेसर और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हुए।

कुल 60 से अधिक शोध पत्र (Research Papers) प्रस्तुत किए गए, जिनमें कृषि ऑटोमेशन, स्मार्ट फार्मिंग, AI आधारित रोग पहचान प्रणाली और जलवायु-अनुकूल खेती पर विशेष ध्यान दिया गया।


सम्मेलन में छात्रों ने पोस्टर प्रेजेंटेशन, प्रोटोटाइप डेमो और स्टार्टअप आइडिया भी प्रस्तुत किए, जिन्हें सराहा गया।



---


🌐 डिजिटल इंडिया और कृषि 2.0 की ओर कदम


वक्ताओं ने कहा कि “डिजिटल इंडिया” अभियान ने किसानों को नई तकनीक से जोड़ने का अवसर दिया है।

AI और IoT आधारित सिस्टम अब गाँव-गाँव तक पहुँच रहे हैं।

ड्रोन तकनीक, सैटेलाइट इमेजिंग और रिमोट सेंसिंग के प्रयोग से कृषि को नई दिशा मिल रही है।


इन तकनीकों से:


सिंचाई और उर्वरक की सटीक मात्रा तय की जा सकती है।


फसलों की निगरानी वास्तविक समय (real-time) में संभव हो रही है।


और मौसम परिवर्तन की सही भविष्यवाणी से किसान नुकसान से बच सकते हैं।




---


💬 सम्मेलन का निष्कर्ष


सम्मेलन के अंतिम सत्र में विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकाला कि —


> “भारत की कृषि प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का समावेश भविष्य की आवश्यकता है।”




डॉ. दुबे ने कहा कि एआई और डेटा विश्लेषण तकनीकें केवल बड़े किसानों के लिए नहीं, बल्कि छोटे और सीमांत किसानों तक भी पहुँचना चाहिए।

इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शैक्षणिक संस्थानों को मिलकर कार्य करना होगा।



---


🏅 सम्मान और समापन समारोह


समापन सत्र में प्रमुख वक्ताओं को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

संस्थान के निदेशक ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि केआईटी आने वाले समय में कृषि और तकनीकी नवाचारों के लिए एक प्रमुख केंद्र बनेगा।



---


🌟 भविष्य की दिशा


इस सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत का भविष्य “स्मार्ट एग्रीकल्चर” में छिपा है।

जहाँ खेती केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक डेटा-चालित विज्ञान बनेगी।

AI, ML, IoT और जीनोमिक तकनीकें मिलकर खेती को अधिक लाभदायक, टिकाऊ और पर्यावरण-संतुलित बना सकती हैं।



---


✍️ निष्कर्ष रूप में


> दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन ने यह साबित किया कि

जब शिक्षा, तकनीक और कृषि साथ आते हैं,

तो न केवल किसान, बल्कि पूरा देश आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ता है।



Comments