रामगढ़ काउंटिंग रूम का सच: आख़िरी राउंड तक क्या छिपाया गया? तनाव, बवाल और सिर्फ 30 वोटों से तय हुई किस्मत का पूरा अंदरूनी खुलासा

 रामगढ़ काउंटिंग रूम का सच: आख़िरी राउंड तक आखिर क्या छिपाया गया? रामगढ़ काउंटिंग का पूरा अंदरूनी खुलासा


कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट इस बार सिर्फ एक चुनावी मैदान नहीं थी—यह बिहार के चुनावी सिस्टम, प्रशासनिक कार्यप्रणाली, राजनीतिक दबाव और जनाक्रोश का केंद्र बन गई। वह दिन, जब पूरे राज्य में चुनाव परिणाम घोषित किए जा रहे थे, कैमूर के रामगढ़ में माहौल बिल्कुल अलग था। यहाँ नतीजों की रफ्तार ठहर गई थी, माहौल में तनाव था, और काउंटिंग सेंटर के बाहर भीड़ का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। सवाल उठ रहे थे कि आखिर इस एक सीट पर नतीजे रात तक क्यों रोके गए? आखिर किस बात का इंतज़ार हो रहा था? और आखिरी राउंड तक क्या छिपाया जा रहा था?


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रामगढ़ विधानसभा की यह कहानी चुनावी राजनीति के उन पहलुओं को उजागर करती है जिन्हें आम लोग अक्सर नहीं देख पाते। यह सिर्फ मतगणना का विवाद नहीं था, यह लोकतंत्र की उस असल तस्वीर का हिस्सा था जिसमें सत्ता, प्रशासन, समर्थक और जनता—सभी एक-दूसरे के सामने खड़े दिखाई देते हैं।



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काउंटिंग रूम के बाहर का माहौल—तनाव, अफरा-तफरी और पथराव


सुबह से ही काउंटिंग सेंटर के बाहर भीड़ जमा होने लगी थी। बीएसपी समर्थक अपने उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह की बढ़त को लेकर उत्साहित थे, लेकिन दोपहर होते-होते स्थितियां बदलने लगीं। जो परिणाम सुबह तेजी से सामने आ रहे थे, वे अचानक धीमे पड़ गए। राउंड के आंकड़े देर से घोषित किए जा रहे थे।


बीएसपी कार्यकर्ताओं को संदेह हो रहा था कि जानबूझकर मतगणना की रफ्तार को धीमा किया जा रहा है।


जैसे-जैसे शाम बढ़ती गई, तनाव भी बढ़ता चला गया। भीड़ नारे लगाने लगी। कुछ जगहों पर प्रशासन और समर्थकों के बीच झड़प जैसी स्थिति भी दिखी। सुरक्षा बल तैनात था, लेकिन हालात नियंत्रण में नहीं थे। देखते ही देखते नारेबाजी बढ़ी और फिर पत्थरबाज़ी शुरू हो गई। यह वही पल था जब काउंटिंग सेंटर के बाहर बवाल ने गंभीर रूप ले लिया।



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क्यों रोका गया आख़िरी राउंड? क्या था विवाद का मूल?


सबसे बड़ा सवाल यहीं से पैदा हुआ—

मतगणना तब तक जारी क्यों नहीं हुई जब तक भीड़ ने बवाल नहीं किया?

प्रशासन किस दबाव में था?

क्यों नतीजे को आखिरी राउंड तक रोका गया?


कई सूत्रों के अनुसार, शुरुआती राउंड में बीएसपी के सतीश कुमार सिंह लगातार आगे चल रहे थे। जैसे-जैसे राउंड आगे बढ़ा, अंतर कभी बढ़ा, कभी थोड़ा घटा लेकिन बढ़त बनी रही।


लेकिन आख़िरी 2 राउंड आते-आते परिणाम की घोषणा अचानक बंद हो गई।


काउंटिंग रूम में मौजूद कुछ लोगों का दावा था कि प्रशासनिक स्तर पर किसी 'कन्फर्मेशन' का इंतजार किया जा रहा था।

इसका स्पष्ट कारण सामने नहीं आया, लेकिन समर्थकों को यह ‘नतीजे रोकने की कोशिश' लगा।



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रात होते-होते हालात बिगड़े—मायावती की एंट्री


जब तनाव बढ़ा और बवाल ने रफ्तार पकड़ ली, तब लखनऊ तक आवाज पहुंची। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी पोस्ट करके कहा कि रामगढ़ में जानबूझकर नतीजे रोके जा रहे हैं और चुनाव प्रक्रिया में धांधली के संकेत मिल रहे हैं।


उन्होंने सीधे तौर पर बिहार की चुनाव प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा कर दिया।


यह पोस्ट आते ही प्रशासन पर दबाव और बढ़ गया।


रात लगभग उसी समय काउंटिंग फिर से शुरू हुई और आखिरी 2 राउंड पूरे कराए गए।



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30 वोटों से जीत—लेकिन किसके लिए जीत, किसके लिए चुभन?


आखिरी राउंड की गिनती खत्म होने के बाद हैरान करने वाला नतीजा सामने आया।

बीएसपी उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह मात्र 30 वोटों से विजयी घोषित किए गए।


30 वोट—यानी एक गांव की जनसंख्या से भी कम।

यही वह अंतर था जिसने पूरे दिन के बवाल, देरी और विवाद को एक बड़ी बहस में बदल दिया।


बीएसपी समर्थक जश्न मनाने लगे, लेकिन उनके मन में सवाल भी उतना ही मजबूत था—

क्या वाकई चुनाव फेयर था?

अगर आख़िरी राउंड समय पर हो जाता तो क्या अंतर और बढ़ सकता था?


वहीं पराजित उम्मीदवारों के समर्थकों ने भी काउंटिंग प्रक्रिया पर कई सवाल उठाए।



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काउंटिंग रूम का अंदरूनी माहौल—सूत्रों का दावा


काउंटिंग रूम के अंदर क्या हुआ? इस सवाल के जवाब में कई बातें निकलकर आती हैं:


1. कई बार ईवीएम टेबल बदलने से लेकर फॉर्म-17C की एंट्री तक देर होती रही।



2. कुछ राउंड के आंकड़ों और फॉर्म में अंतर पाया गया जिसे दोबारा जांचा गया।



3. कुछ एजेंटों ने आरोप लगाया कि उन्हें सही समय पर डेटा नहीं दिया जा रहा था।



4. काउंटिंग सुपरविजन बेंच कई बार मीटिंग में गया, जिससे देरी और बढ़ी।



5. आखिरी राउंड में दो टेबलों की एंट्री रोक दी गई थी जिसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया।




ये वे बिंदु हैं जो प्रशासनिक कार्यप्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करते हैं।



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रामगढ़ चुनाव विवाद ने क्या संकेत दिए?


यह चुनाव सिर्फ एक सीट की कहानी नहीं है। यह संकेत है कि—


बिहार की चुनावी व्यवस्था में जनता का भरोसा कमजोर हो रहा है।


काउंटिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत है।


छोटी से छोटी सीट पर भी राजनीतिक दबाव असर डाल सकता है।


मतगणना केंद्रों की निगरानी और सुरक्षा में सुधार जरूरी है।


उम्मीदवारों और समर्थकों को समय पर डेटा उपलब्ध कराना अनिवार्य है।




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मायावती का तीखा बयान—क्या असर पड़ेगा?


मायावती ने अपनी पोस्ट में स्पष्ट कहा कि—

“बिहार में चुनाव फ्री और फेयर तरीके से नहीं हुआ। रामगढ़ इसका बड़ा उदाहरण है।”


उनके इस बयान का राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक असर पड़ सकता है।

बीएसपी की लंबे समय बाद बिहार में ऐसी जीत आई है, वह भी इतने विवादों के बाद।


इससे उनकी पार्टी के मनोबल पर तो असर पड़ेगा ही, साथ ही विपक्ष भी चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने लगेगा।



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स्थानीय जनता क्या बोली?


रामगढ़ के कई लोगों का कहना है—


“नतीजे रोककर माहौल गरम किया गया।”


“काउंटिंग में देरी समझ से बाहर थी।”


“भीड़ को उकसाया नहीं गया, लेकिन लोगों का सब्र टूट गया था।”


“अगर सबकुछ सही था तो आखिरी राउंड में देरी क्यों?”



ये बयान बताते हैं कि मामला जनता की नजर में भी संदिग्ध बन चुका है।



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आगे क्या? क्या पुनर्गणना की मांग होगी?


अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पराजित पक्ष पुनर्गणना की मांग करेगा?

कानून के अनुसार, 30 वोट जैसा बहुत कम अंतर ऐसी मांग को मजबूती देता है।


संभावना है कि मामला आयोग तक पहुंचे।



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निष्कर्ष—रामगढ़ सिर्फ एक सीट नहीं, लोकतंत्र की चेतावनी है


रामगढ़ की कहानी हमें बताती है कि—


लोकतंत्र केवल वोट डालकर पूरा नहीं होता।


लोकतंत्र काउंटिंग रूम की पारदर्शिता पर भी निर्भर करता है।


मतों की ईमानदार गिनती ही जनता के भरोसे की नींव है।



रामगढ़ का यह चुनाव विवाद आने वाले समय में कई राजनीतिक बहसों और सुधारों का कारण बन सकता है।

चाहे जीत बीएसपी की हुई हो या हार विपक्ष की—

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र जीत पाया?




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