“दामोदर यादव व धीरेंद्र शास्त्री विवाद: दतिया में पुतला-दहन, ‘संविधान बचाओ’ यात्रा का ऐलान”

 मध्य प्रदेश के दतिया जिले के इंदरगढ़ कस्बे में शनिवार शाम को काफी उत्तेजना भरा माहौल देखने को मिला है

। इस घटना के केंद्र में थे हिंदू धर्मप्रचारक पं. धीरेंद्र शास्त्री और दलित-पिछड़ा समाज नेता दामोदर यादव। दामोदर यादव की अगुआई में निकाली गई प्रतिक्रिया रैली के दौरान शास्त्री का पुतला दहन किया गया। इस पर हिंदू संगठनों ने भी कार्रवाई करते हुए यादव का पुतला फूंका। दोनों पक्षों में तीखे नारेबाज़ी के बाद पथराव और लाठीचार्ज की स्थिति बन गई — जिससे चार से अधिक लोग घायल हुए और तनाव के मद्देनज़र भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा। 


इसके पहले, दामोदर यादव ने शास्त्री की ‘हिंदू राष्ट्र यात्रा’ को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने की घोषणा की थी। 



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घटनाक्रम का क्रम


1. यात्रा का विरोध: दामोदर यादव की अगुआई में दलित-पिछड़ा समाज संगठन ने यह कहा कि धीरेंद्र शास्त्री द्वारा निकाली जा रही हिंदू राष्ट्र यात्रा संविधान विरोधी है। उन्होंने 16 नवंबर से ग्वालियर से ‘संविधान बचाओ यात्रा’ शुरू करने का ऐलान किया। 



2. रैली व पुतला दहन: भीम आर्मी व आज़ाद समाज पार्टी के लगभग 200 कार्यकर्ता इंदरगढ़ में रैली निकाल रहे थे। इस दौरान पं. शास्त्री के पुतले को दहन के लिए ले जाए जाते समय वहां मौजूद हिंदू संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। 



3. हिंसात्मक झड़पें: विरोध-प्रदर्शन के दौरान नारेबाज़ी में तेज़ी आई, घिरे दोनों पक्षों ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस ने लाठीचार्ज और वाटर कैनन लगाना पड़ा। चार लोग घायल हुए। 



4. पुलिस बल की तैनाती: स्थिति संभालने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया। दोनों पक्षों के प्रमुख कार्यकर्ताओं की पहचान कर ली गई है। 





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अहम पक्षों का रुख


दामोदर यादव का कहना है कि यह यात्रा आरक्षण-विरोधी तत्वों को सहयोग दे रही है। उन्होंने इसे मंडल बनाम कमंडल की राजनीति कहा और चेताया कि संगठन इसे सफल नहीं होने देगा। 


धीरेंद्र शास्त्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि यदि उन्हें उत्तेजित किया गया तो वे चुप नहीं बैठेंगे, और उन्होंने धर्म-संस्कृति की रक्षा का समर्थन किया। 


दोनों संगठनों के बीच यह विवाद इसलिए और भड़का क्योंकि पुतला-दहन धार्मिक भावना तथा सामाजिक समरसता दोनों को चुनौती देने जैसा माना गया।




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सामाजिक एवं राजनीतिक प्रासंगिकता


यह घटना सिर्फ एक प्रदर्शन तक सीमित नहीं रही — इसमें दलित-पिछड़ा समाज का आंदोलन, धार्मिक-राष्ट्रीय विचारधारा, सामाजिक अस्मिता की लड़ाई और संविधान-संविधानवाद जैसी बड़ी विषयवस्तु सामने आई है। ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग और उसके विरोध में ‘संविधान बचाओ’ प्रतिवाद के रूप में खड़ा हुआ आंदोलन इस बात का संकेत है कि आज की राजनीति में धर्म, जात-पांत, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय गढ़ना बेपरवाह नहीं रह सकते।



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निष्कर्ष


इंदरगढ़ में हुई यह घटना एक झलक है उस सामाजिक तनाव की, जो हिंदू एकता-यात्रा, आरक्षण-सुधार, जातिगत पुनर्संरचना और धार्मिक प्रतिस्पर्धा के बीच उभरा है। दामोदर यादव और धीरेंद्र शास्त्री के बीच टकराव ने इसे सिर्फ व्यक्तिगत विरोध का मामला नहीं बल्कि सामूहिक बहस का मुद्दा बना दिया है। समय बताएगा कि क्या यह आंदोलन एक शांतिपू

र्ण संवाद में बदल पाएगा या विवाद गहराता जाएगा।

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