देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता—सुप्रीम कोर्ट ने जताई गहरी चिंता, केंद्र व राज्यों को कड़ा निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने लापता बच्चों की बढ़ती संख्या को बताया गंभीर सामाजिक संकट,
प्रस्तावना (Introduction)
भारत में बच्चों की सुरक्षा हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, लेकिन हाल ही में आई रिपोर्ट ने पूरे देश का ध्यान खींच लिया है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि भारत में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो रहा है। यह आंकड़ा सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि समाज के सामने खड़ी एक गंभीर चुनौती का संकेत है। इस रिपोर्ट ने न सिर्फ कोर्ट को चिंतित किया, बल्कि यह देश की कानून-व्यवस्था, मानवाधिकार व्यवस्था और बाल सुरक्षा तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर परिस्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने केंद्र को दो टूक कहा कि बच्चों की सुरक्षा किसी भी कीमत पर ढीली नहीं पड़नी चाहिए।
यह रिपोर्ट इस मुद्दे के हर पहलू—कोर्ट की टिप्पणियाँ, सरकारी व्यवस्था की कमियाँ, जिम्मेदारियों का निर्धारण, जमीनी सच्चाई और समाधान के रास्ते—को विस्तार से बताती है।
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1. सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी—"हर 8 मिनट में बच्चा गायब, यह सामान्य नहीं"
सुनवाई की शुरुआत में ही कोर्ट ने समाचार रिपोर्ट का ज़िक्र करते हुए कहा कि यदि यह तथ्य सही है कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो रहा है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। कोर्ट ने कहा:
> “यह केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि उन परिवारों का दर्द है जिनके बच्चे आज भी पता नहीं कहाँ हैं। राज्य इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले सकता।”
कोर्ट ने केंद्र के वरिष्ठ अधिवक्ता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एश्वर्य भाटी से पूछा कि इस समस्या से निपटने के लिए क्या ठोस व्यवस्था बनाई गई है।
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2. केंद्र सरकार को कड़े निर्देश
कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि:
✔ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में
लापता बच्चों के मामलों के लिए एक नोडल अधिकारी अनिवार्य रूप से नियुक्त किया जाए।
यह नोडल अधिकारी पुलिस और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करे।
बच्चों की खोज, जांच, FIR, ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी तय की जाए।
✔ गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
संयुक्त रूप से एक समन्वित तंत्र तैयार करें।
राज्य सरकारों से हर महीने प्रगति रिपोर्ट लेने की व्यवस्था करें।
ऑनलाइन पोर्टल “TrackChild” या किसी नए पोर्टल को मजबूत बनाया जाए।
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3. दिसंबर 2025 तक पूरी प्रक्रिया अपडेट करने का आदेश
कोर्ट ने ASG की मांग स्वीकार करते हुए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति और पोर्टल की व्यवस्था को नवंबर–दिसंबर तक पूरी तरह अपडेट करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा:
> “बच्चों की सुरक्षा में देरी का कोई सवाल ही नहीं। हर राज्य में काम एक समान स्तर पर होना चाहिए।”
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4. शिकायत दर्ज होते ही सूचना नोडल अधिकारी तक पहुँचे—कोर्ट की सख्त हिदायत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
यदि किसी भी राज्य में किसी बच्चे की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होती है,
तो तुरंत संबंधित नोडल अधिकारी, पुलिस, और जांच टीम को इसकी सूचना मिले,
ताकि जाँच में देरी न हो।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मामलों को “Pending” रखने या "Low Priority" दिखाने की प्रवृत्ति अब खत्म होनी चाहिए।
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5. गृह मंत्रालय की विशेष टीम—ऑनलाइन मॉनिटरिंग की व्यवस्था
गृह मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि वह बच्चों की गुमशुदगी के मामलों पर नज़र रखने के लिए एक विशेष मॉनिटरिंग टीम बना रहा है, जो:
राज्यों से मासिक रिपोर्ट प्राप्त करेगी
गुमशुदगी के मामलों को ऑनलाइन ट्रैक करेगी
डाटा एनालिसिस तैयार कर केंद्र को भेजेगी
कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी दिखनी चाहिए।
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6. राज्यों की लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट नाराज़
कई राज्यों ने अभी तक:
नोडल अधिकारी नियुक्त नहीं किए
रिपोर्टिंग सिस्टम अपडेट नहीं किए
पोर्टल पर पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई
कोर्ट ने इसे ढीली कार्यप्रणाली बताते हुए कहा:
> “बच्चों की सुरक्षा प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होनी चाहिए। राज्यों का ढुलमुल रवैया स्वीकार नहीं।”
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7. ऑनलाइन पोर्टल की खामियाँ—कोर्ट ने सवाल उठाए
कोर्ट ने कहा कि:
पोर्टल पर कई राज्यों की रिपोर्ट अपडेट नहीं होती
बच्चे की खोज की स्थिति नहीं दिखती
माता–पिता को असली स्थिति की जानकारी नहीं मिलती
पोर्टल का उपयोग करने वाले पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण की कमी है
इस पर कोर्ट ने गृह मंत्रालय से कहा कि पोर्टल को:
✔ Mobile Friendly
✔ Real-time update वाला
✔ FIR-linked
✔ Photo recognition supported
बनाया जाए।
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8. लापता बच्चों के पीछे संभावित कारण—रिपोर्ट में गहरी पड़ताल
✔ मानव तस्करी
कई बच्चों को काम, भीख या यौन शोषण के लिए तस्कर ले जाते हैं।
✔ अपहरण और फिरौती
कुछ मामलों में गुट बच्चों को अगवा कर ब्लैकमेलिंग करते हैं।
✔ घर से भागना
कई किशोर घरेलू हिंसा, गरीबी या परिवार के दबाव के कारण भाग जाते हैं।
✔ प्राकृतिक आपदा और भीड़ वाले आयोजन
भीड़ में बच्चे बिछड़ जाते हैं और फिर उनका पता नहीं चलता।
✔ अवैध गोद लेने के रैकेट
दिल्ली–पश्चिम बंगाल–ओडिशा में ऐसे कई मामले सामने आए हैं।
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9. आंकड़े क्या कहते हैं? (राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य)
NCRB के अनुसार हर साल 1 लाख से अधिक बच्चे लापता हो जाते हैं।
इनमें से लगभग 30% का अब तक पता नहीं चलता।
50% मामले ऐसे हैं जहाँ FIR दर्ज ही नहीं होती।
सबसे अधिक मामले दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में।
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10. कोर्ट की टिप्पणी—“बच्चा देश का भविष्य है, उसकी सुरक्षा सर्वोपरि”
कोर्ट ने कहा:
> “जब एक भी बच्चा गुमशुदा होता है, तो परिवार ही नहीं, पूरा समाज आहत होता है।
बच्चे देश की जिम्मेदारी हैं, केवल माता–पिता की नहीं।”
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11. महाराष्ट्र सरकार पर कोर्ट की नाराज़गी (आरक्षण मामले में अलग से)
इसी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आरक्षण और निकाय चुनाव से जुड़े मामलों में फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा कि:
आरक्षण डेटा पूरा नहीं
पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट अधूरी
चुनाव टालने की कोशिश गलत
यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोर्ट लगातार राज्यों को प्रशासनिक पारदर्शिता की ओर धकेल रहा है।
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12. लापता बच्चों के मामले में सुधार के लिए कोर्ट के 14 प्रमुख निर्देश (संक्षेप)
1. हर राज्य में नोडल अधिकारी नियुक्त करें
2. नवंबर–दिसंबर तक पूरी प्रक्रिया पूरी हो
3. सभी FIR को राष्ट्रीय पोर्टल से लिंक करें
4. गुमशुदगी की सूचना तुरंत नोडल अधिकारी तक पहुँचे
5. परिवार को वास्तविक स्थिति बताई जाए
6. पोर्टल को अपडेट रखा जाए
7. सीनियर अधिकारियों द्वारा निगरानी
8. जांच में देरी न हो
9. राज्यों से मासिक प्रगति रिपोर्ट
10. फोटो पहचान तकनीक शामिल की जाए
11. इंटरनेट, CCTV और मोबाइल लोकेशन का उपयोग
12. तस्करी रैकेट्स पर विशेष अभियान
13. स्कूल–समाज को जागरूक करें
14. असहाय बच्चों के लिए हेल्पलाइन मजबूत की जाए
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13. विशेषज्ञों का विश्लेषण—“डेटा बताता है कि समस्या गहरी है”
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि:
पुलिस कई मामलों में ‘रन अवे केस’ बताकर फाइल बंद कर देती है
नोडल अधिकारी केवल नाम के होते हैं
महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाएँ कागजों पर सीमित हैं
गरीब बच्चों के मामलों में ढिलाई सबसे ज्यादा
विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट ने सही समय पर मुद्दे को उठाया।
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14. जमीनी सच्चाई—परिवारों की पीड़ा
कई माता–पिता वर्षों से अपने बच्चों का इंतजार कर रहे हैं।
वे कहते हैं:
पुलिस FIR लेने में भी घुमाती है
जांच में महीनों की देरी
अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला
कोर्ट का यह आदेश उन परिवारों के लिए
उम्मीद बना है।
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15. निष्कर्ष—देश को एक मजबूत बाल-सुरक्षा ढांचे की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट की चिंता बिल्कुल उचित है।
भारत जैसे देश में, जहाँ बच्चे आबादी का बड़ा हिस्सा हैं, उनका एक भी लापता होना गंभीर मामला है।
यह मुद्दा केवल पुलिस या सरकार का नहीं—पूरा समाज मिलकर ही इसे हल कर सकता है।
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