जैव विविधता संरक्षण के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन बढ़ाना अनिवार्य: विशेषज्ञों ने दिए ठोस सुझाव

 प्रस्तावना: जैव विविधता—मानव अस्तित्व की रीढ़


नई दिल्ली में मंगलवार को आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में देशभर से आए पर्यावरण विशेषज्ञों, नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने जैव विविधता संरक्षण को लेकर चिंता व्यक्त की। बैठक में यह स्पष्ट कहा गया कि भारत सहित विश्व के कई देश निर्धारित लक्ष्यों की ओर अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहे हैं, और इसका मुख्य कारण है—वित्तीय संसाधनों की कमी।


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कटिंग में उल्लिखित बयान का मूल सार यही है कि—

“जैव विविधता लक्ष्य पूरे करने के लिए वित्तीय संसाधन तुरंत उपलब्ध कराए जाएं।”


इस रिपोर्ट में हम इस मुद्दे को गहराई से समझेंगे, विशेषज्ञों की राय, सरकारी योजनाओं की स्थिति, चुनौतियां, समाधान और भविष्य की रणनीति को विस्तृत रूप में समझेंगे।



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1. बैठक का उद्देश्य और पृष्ठभूमि


इस बैठक का मूल उद्देश्य था:


1. जैव विविधता संरक्षण से जुड़े राष्ट्रीय लक्ष्यों की समीक्षा



2. वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन



3. अंतरराष्ट्रीय समझौतों (जैसे COP, GEF, CBD) के तहत भारत की प्रतिबद्धता



4. पर्यावरणीय खतरे और बढ़ते जलवायु परिवर्तन का विश्लेषण



5. नीति-निर्माताओं और वैज्ञानिकों के बीच तालमेल बनाना




बैठक का आयोजन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से किया गया था। इस कार्यक्रम में कई विश्वविद्यालयों के जैव विज्ञान विभागों के प्रमुख, पर्यावरणीय थिंक-टैंक, अनुसंधान संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ मौजूद रहे।



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2. जैव विविधता संकट कितना गंभीर है?


विशेषज्ञों ने बैठक में कई महत्वपूर्ण रिपोर्टें और शोध प्रस्तुत किए, जिनसे पता चलता है कि:


भारत के 33% से अधिक वन क्षेत्र में जैव विविधता कम हो रही है।


लगभग 12% पशु प्रजातियाँ विलुप्ति के खतरे में हैं।


नदी पारिस्थितिकी तंत्र प्रदूषण के कारण तेजी से बिगड़ रहा है।


74% भू-भाग किसी न किसी रूप में पर्यावरणीय दवाब झेल रहा है।


जलवायु परिवर्तन ने वनाग्नि, सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ा दी है।



पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो आने वाले वर्ष देश की कृषि, उद्योग, जलस्रोतों और मानव स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव डालेगी।



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3. वित्तीय संसाधनों की कमी—सबसे बड़ा अवरोध


बैठक में विशेषज्ञों ने कहा कि:


“जैव विविधता संरक्षण का लक्ष्य बड़ा है, लेकिन संसाधन बहुत कम हैं।”


सरकारी योजनाओं पर आवंटित बजट मांग से कई गुना कम है।


राज्यों के पास भी पर्यावरण सुरक्षा के लिए पर्याप्त फंड नहीं है।


संरक्षण परियोजनाओं, वन्यजीव सुरक्षा, वेटलैंड प्रबंधन, नदी पुनर्जीवन और अनुसंधान के लिए धनराशि सीमित है।


अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी कोरोना महामारी के बाद कम हो गई है।



अनुमानित वित्तीय आवश्यकता


विशेषज्ञों ने बताया कि भारत को 2025 तक जैव विविधता संरक्षण पर कम से कम 200,000 करोड़ रुपये तक का निवेश करना होगा, जबकि अभी यह आंकड़ा एक चौथाई भी नहीं है।



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4. बैठक में क्या कहा गया?—मुख्य बिंदु


प्रमुख वक्ताओं ने नीचे दिए गए प्रमुख मुद्दों पर जोर दिया:


1. वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना जरूरी


“अगर हम आर्थिक मदद नहीं देंगे, तो जैव विविधता लक्ष्य केवल दस्तावेज़ बनकर रह जाएंगे।”


2. स्थानीय समुदायों को फंड देना चाहिए


जो समुदाय जंगलों, नदियों और पहाड़ी क्षेत्रों को बचाते हैं, उनकी आर्थिक मदद की जानी चाहिए।


3. अनुसंधान और तकनीक में निवेश आवश्यक


उपग्रह आधारित मॉनिटरिंग


जीन बैंक


प्रजाति पुनर्स्थापन कार्यक्रम


स्मार्ट कंजर्वेशन तकनीक



4. पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता बढ़ानी होगी


स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक पर्यावरण विज्ञान को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए।


5. उद्योगों को ग्रीन फंडिंग में योगदान देना चाहिए


CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के माध्यम से “ग्रीन बजट” बढ़ाया जाए।



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5. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारत की चुनौतियाँ


भारत ने COP (Conference of Parties) और CBD (Convention on Biological Diversity) में कई वादे किए हैं, जैसे:


30X30 लक्ष्य: 2030 तक 30% भूमि और समुद्री क्षेत्र को संरक्षित करना


वन पुनर्स्थापन लक्ष्य


प्रदूषण कम करना


प्रजातियों के विलुप्ति दर को घटाना



लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि:


शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है


औद्योगिक परियोजनाएँ जंगल क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं


प्रदूषण नियंत्रण प्रभावी नहीं है


कचरा प्रबंधन प्रणाली कमजोर है


प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जा रहे हैं




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6. क्या कहता है वैज्ञानिक समुदाय?


वैज्ञानिकों ने बैठक में कहा:


“भारत का जैव-धरोहर दुनिया में अद्वितीय है, लेकिन इसे बचाने के लिए अब तत्काल कार्रवाई आवश्यक है।”


संरक्षण क्षेत्र बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं; प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र को सक्रिय रूप से पुनर्जीवित करना भी जरूरी है।


आधुनिक विज्ञान—जैसे DNA बारकोडिंग, जियो-टैगिंग, AI आधारित प्रजाति सर्वेक्षण—को तेजी से अपनाना होगा।




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7. ग्रामीण और आदिवासी समुदायों की भूमिका


बैठक में यह भी बताया गया कि भारत में जैव विविधता को संरक्षित करने का सबसे बड़ा श्रेय स्थानीय समुदायों और आदिवासी समाज को जाता है।


उदाहरण:


वन संपदा की देखभाल


प्राकृतिक जलस्रोतों की सुरक्षा


औषधीय पौधों का संरक्षण


टिकाऊ कृषि प्रथाएं



लेकिन इन समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त किए बिना जैव विविधता संरक्षण प्रभावी नहीं हो सकता।



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8. सरकार की मौजूदा योजनाएँ—क्या पर्याप्त हैं?


सरकार ने कई योजनाएँ चलाई हैं:


राष्ट्रीय जैव विविधता मिशन


वन्यजीव संरक्षण परियोजनाएँ


नमामि गंगे


CAMPA फंड


राष्ट्रीय उद्यानों का आधुनिकीकरण



लेकिन विशेषज्ञों का मत है—


“नीतियाँ अच्छी हैं, पर बजट कम और क्रियान्वयन धीमा है।”



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9. विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए समाधान


1. जैव विविधता फंड का निर्माण



2. निजी क्षेत्र की ग्रीन इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा



3. राज्यों के लिए प्रदर्शन आधारित फंडिंग



4. नदी, वेटलैंड और पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विशेष पैकेज



5. उच्च स्तर का राष्ट्रीय जैव विविधता सर्वेक्षण



6. ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देना



7. वनाग्नि प्रबंधन सिस्टम में निवेश



8. जैव विविधता पर राष्ट्रीय डेटाबेस को अपग्रेड करना





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10. क्या होगा अगर फंडिंग नहीं बढ़ी?—भविष्य की चेतावनी


जलवायु परिवर्तन की गति और बढ़ जाएगी


नदियों का प्रदूषण नियंत्रण कठिन हो जाएगा


कृषि प्रणाली अस्थिर होगी


विलुप्त होने वाली प्रजातियों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी


पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा


बड़े शहरों में तापमान और प्रदूषण दोनों बढ़ेंगे


प्राकृतिक आपदाओं का खतरा दोगुना हो जाएगा



विशेषज्ञों ने कहा—


“यदि जैव विविधता नष्ट हुई तो मानव जीवन की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी।”



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निष्कर्ष: जैव विविधता संरक्षण में समय कम है—कदम तुरंत उठाने होंगे


नई दिल्ली में आयोजित इस बैठक ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि:


संसाधन कम हैं, लक्ष्य बड़े हैं।


वित्तीय सहायता के

 बिना जैव विविधता संरक्षण संभव नहीं है।


सरकार, वैज्ञानिक, उद्योग और नागरिक—सभी को मिलकर काम करना होगा।



विशेषज्ञों ने आग्रह किया कि सरकार जल्द से जल्द वित्तीय आवंटन बढ़ाए, ताकि भारत अपने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय लक्ष्यों को समय पर पूरा कर सके।


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