“धीरेंद्र शास्त्री की ‘हिंदू राष्ट्र’ यात्रा पर विवाद: दामोदर यादव ने किया जोरदार विरोध — ‘संविधान बचाओ’ का एलान”
मध्य प्रदेश के दतिया-भोपाल इलाके में धार्मिक-सामाजिक एकता प्रदर्शन के नाम पर निकाली जा रही यात्रा ने तूल पकड़ लिया है। इस यात्रा के एक ओर आयोजक पंडित धीरेंद्र शास्त्री हैं, वहीं दूसरी ओर समाज के दलित-पिछड़ा तबके के प्रतिनिधि दामोदर यादव अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
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🔍 यात्रा की पृष्ठभूमि
पंडित धीरेंद्र शास्त्री, जो कि बागेश्वर धाम सरकार से जुड़े हैं, “हिंदू एकता” तथा “हिंदू राष्ट्र” के नारे के साथ देश में एक पदयात्रा चला रहे हैं।
उनके समर्थन में यह कहा जा रहा है कि यह यात्रा “सनातन संस्कृति”, “हिंदू जागरण” और “हिंदू राष्ट्र की स्थापना” की ओर कदम है।
दूसरी ओर दामोदर यादव ने यह यात्रा असंवैधानिक, विभाजनकारी तथा संविधान की मूल भावना (धर्मनिरपेक्षता) के ख़िलाफ़ बताया है।
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📌 दामोदर यादव का विरोध – मुख्य बिंदु
दामोदर यादव का कहना है कि “भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है”, संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ शब्द मौजूद है और किसी विशेष धर्म के नाम पर राष्ट्र बनाने की मांग संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ है।
उन्होंने यह आरोप लगाया कि शास्त्री की यात्रा में कथित रूप से न केवल “हिंदू राष्ट्र” की बात की जा रही है, बल्कि सामाजिक-वर्गीभेद, जाति-पिछड़े वर्गों की उपेक्षा और एक विशेष समुदाय के खिलाफ नफरत-वाणी का तत्व मौजूद है।
साथ ही, उन्होंने सरकार और न्यायपालिका से इस यात्रा को रोकने के लिए कदम उठाने की मांग की है—विशेष रूप से एक जनहित याचिका (PIL) तैयार करने और सुप्रीम कोर्ट तक जाने की घोषणा की है।
उन्होंने एक “संविधान बचाओ यात्रा” की घोषणा भी की है, जो 16 नवंबर से ग्वालियर से शुरू होगी, और इस यात्रा का उद्देश्य माना गया है उक्त “हिंदू राष्ट्र” रोडमैप का विरोध करना।
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🎯 शास्त्री की यात्रा – उद्देश्य एवं प्रतिक्रियाएँ
शास्त्री की यात्रा को उनके समर्थक “हिंदू संगठन, जागरण, सनातन धारा का पुनरुद्धार” बताकर इसे सकारात्मक रूप से पेश कर रहे हैं।
शास्त्री ने खुद कहा है कि “यह कोई शोभायात्रा नहीं, बल्कि हिंदू राष्ट्र के संकल्प की शुरुआत है”।
इसपर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक न्याय-सक्रिय समूहों ने सवाल उठाया है कि एकता की बात करने वालों को पहले अपनी ही धर्म-समुदाय, मंदिर-पारंपरिक व्यवस्था, जाति-वर्ग-असमानता पर काम करना चाहिए।
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⚠️ विवाद एवं समाज-राजनीतिक मायने
यह विवाद सिर्फ धर्म-संस्कृति तक सीमित नहीं है; यह संवैधनिक धारा, सामाजिक न्याय, दलित-पिछड़ा समूहों की उपेक्षा और राजनीतिक एजेंडे से जुड़ा हुआ है।
“हिंदू राष्ट्र” का नारा उठना संविधान-विचार (सेक्युलरिज्म) के सवाल खड़ा करता है।
इस किस्म की यात्राओं-निवेदनों में सामाजिक-वर्गीय विभाजन, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर असर, जात-पारंपरिक असमानताओं का पुनरुत्थान भी चिंता-कारक माना जा रहा है। दामोदर यादव का आरोप है कि निचले वर्गों-वंचितों को मंदिर-धर्म-परंपरा के दायरे से बाहर रखा जा रहा है।
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🧭 अगले कदम एवं संभावित प्रभाव
दामोदर यादव द्वारा शुरु की गई “संविधान बचाओ यात्रा” 16 नवंबर से ग्वालियर से होगा और विभिन्न जिलों से होकर दतिया-बुंदेलखंड के रास्ते बागेश्वर धाम तक पहुँचेगा।
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डालने की योजना है, जिससे यह मामला न्याय-मंच पर भी जाएगा।
इस विवाद का असर आगामी विधानसभा/सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों पर पड़ेगा—विशेष रूप से दलित-पिछड़ा वोट बैंक, धार्मिक-सहिष्णुता-विवाद, भाजपा-संबंधित हिंदुत्व राजनीति आदि पर।
यदि यह प्रवृत्ति बढ़ी तो “एक धर्म-देश” का प्रवचन और “बहुसंख्य-वर्चस्व” की राजनीति को बल मिल सकता है, जिससे सामाजिक समरसता पर असर हो सकता है।
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🔎 संक्षिप्त विश्लेषण
यह घटना हमें दिखाती है कि किस प्रकार धार्मिक-आध्यात्मिक आंदोलन और समाज-वर्गीय राजनीति आपस में गुंथे हुए हैं। जहाँ एक ओर शास्त्री की यात्रा में सांस्कृतिक-धार्मिक उत्साह है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक-न्याय आंदोलन में यह सवाल उठता है कि “एकता” के नाम पर किन्हें बाहर रखा जा रहा है, और संवैधानिक मूल्यों (धर्म-निरेपेक्षता, समानता) का क्या होगा? दामोदर यादव का दाव है कि “पहले अपनी ही धारा-समुदाय के भीतर असमानता दूर करनी होगी; केवल हिंदू होने का नारा काफी नहीं है।”
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